नई दिल्ली . प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी भले कह चुके हैं कि उनकी सरकार में 2014 के बाद से एनअारसी पर कभी चर्चा ही नहीं हुई। लेकिन उन्हाेंने यह अभी तक स्पष्ट नहीं किया है कि देशभर में एनअारसी लागू हाेगा या नहीं। हालांकि, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने अभिभाषण में घाेषणा की थी कि एनअारसी आने वाला है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी संसद से लेकर रैलियाें तक में ऐलान कर चुके हैं कि असम के बाद एनआरसी देशभर में लागू हाेगा। दूसरी तरफ, 10 राज्य सरकारें एनआरसी लागू करने से इनकार कर चुकी हैं। कांग्रेस शासित पंजाब, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के अलावा बिहार, अाेडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश अाैर केरल भी इस सूची में हैं। इन राज्याें में देश की 44% आबादी है। अब झारखंड भी इस सूची में अा सकता है। एनअारसी के तहत नागरिकता के नियम ताे केंद्र सरकार ही तय करेगी, लेकिन उस पर अमल का अधिकार राज्यों के पास है।
संविधान के अनुच्छेद 258(1) के तहत विदेशी की पहचान, हिरासत में लेना और वापस भेजना राज्य का काम है। डिटेंशन सेंटर बनाने अाैर संचालित करने का जिम्मा भी राज्याें का है। संविधान विशेषज्ञ अाैर राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण के अनुसार एनआरसी केंद्रीय सूची में है। केंद्र का फैसला लागू करना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है। कोई राज्य इसे लागू करने से इनकार करे ताे केंद्र कह सकता है कि वहां संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई। एेसे में अनुच्छेद 355 के तहत राज्य को चेतावनी दी जा सकती है और अनुच्छेद 356 के तहत सरकार बर्खास्त भी की जा सकती है।
दूसरी तरफ, उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं कि केंद्र का काेई भी फैसला, जिस पर अमल राज्य की जिम्मेदारी हाे, उसे व्यावहारिक ढंग से तभी लागू कर सकते हैं, जब राज्य सहमत हो। एनआरसी भी जनगणना और आधार जैसी व्यवस्था है। प्रभावी क्रियान्वयन के लिए इसमें केंद्र और राज्यों के बीच 100% तालमेल जरूरी है।
डिटेंशन सेंटर के लिए जनवरी में राज्याें काे भेजा था मैनुअल
गृह मंत्रालय ने इस साल 9 जनवरी को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को डिटेंशन सेंटर बनाने का मैनुअल भेजा था। इसमें डिटेंशन सेंटर/होल्डिंग सेंटर/कैंप में अनिवार्य सुविधाअाें का ब्याेरा है। मंत्रालय ने 2 जुलाई को लोकसभा में बताया था- राज्यों से कहा गया है कि डिटेंशन सेंटर में ऐसी सुविधाएं हों कि वहां लोग आत्मसम्मान से जी सकें। बिजली, पेयजल, स्वच्छता, बिस्तर के साथ ठहरने के इंतजाम, पर्याप्त टाॅयलेट, पानी की सप्लाई अाैर रसाेई की व्यवस्था हाे। महिलाओं और खासतौर पर माताअाें का विशेष ख्याल रखा जाए। बच्चों के लिए आसपास के स्कूलों में पढ़ने की व्यवस्था हाे। राज्याें काे विदेशियों को हिरासत में लेने की सूचना विदेश मंत्रालय को देनी हाेगी। वहां से इसकी सूचना संबद्ध दूतावास को दी जाएगी। विदेशी नागरिकों को जेल मैनुअल 2016 के तहत कानूनी सहायता और वापसी में सहायता के लिए भी राज्यों को केंद्र परामर्श जारी कर चुका है। अभी असम में छह डिटेंशन सेंटर चल रहे हैं, जबकि कर्नाटक सहित दाे राज्याें में निर्माणाधीन हैं।
एनअारसी में मांगे जाने वाले दस्तावेज
असम एनअारसी में नागरिकता साबित करने के लिए मतदाता सूची, भूमि या पट्टे का रिकाॅर्ड, सरकार द्वारा जारी काेई प्रमाण पत्र, सरकार से जारी नाैकरी का प्रमाण पत्र, बैंक/डाकघर का खाता, जन्म प्रमाण पत्र, बाेर्ड या यूनिवर्सिटी का शिक्षा प्रमाण पत्र, अदालती दस्तावेज, पासपाेर्ट मान्य थे।
देशभर में एनअारसी लागू हुअा ताे 250 करोड़ दस्तावेजाें की जांच पड़ताल हाेगी, करीब 3 लाख करोड़ रुपए खर्च हाेंगे
असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी बनाने में करीब 10 साल लगे। राज्य सरकार के विभिन्न विभागाें के 52 हजार कर्मचारियों ने इसमें राेज 10-12 घंटे काम किया। 2500 डिजिटल केंद्र बने थे। पूरी प्रक्रिया पर करीब 1600 कराेड़ रुपए खर्च हुए। यह स्थिति तब है, जब असम की आबादी महज 3.2 करोड़ है। अगर देशभर में एनआरसी लागू हुअा ताे 130 करोड़ लाेगाें के दस्तावेज जांचे जाएंगे। एक व्यक्ति के दो दस्तावेज मिलाए जाएंगे। यानी करीब 250 करोड़ दस्तावेज जांचने हाेंगे।
इस हिसाब से देशभर में करीब डेढ़ लाख डिजिटल केंद्र अाैर करीब 20 लाख कर्मचारियों की जरूरत हाेगी। करीब 3 लाख करोड़ रुपए खर्च करने हाेंगे। राजनीतिक विशेषज्ञ एनके सिंह कहते हैं कि पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों के अलावा बाकी देश में शरणार्थियों या घुसपैठियों की संख्या मामूली है। एेसे में अाशंका यह भी है कि इस कवायद के नतीजे नोटबंदी जैसे ही हाें, जब 99% से अधिक करंसी बैंकों में वापस अा गई थी। नाेटबंदी भी केंद्र का फैसला था लेकिन उसे लागू करने के लिए सरकार राज्याें पर निर्भर नहीं थी। उसे बैंकाें के जरिये लागू करवाया गया था।